रूसी तेल पर भारत का रुख: अमेरिकी दबाव में बदलाव?

भारत की सरकारी तेल रिफाइनरियां फिलहाल रूसी कच्चे तेल की खरीद से पीछे हट रही हैं। कंपनियों की खरीद योजनाओं की सीधी जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, यह फैसला वाशिंगटन द्वारा नई दिल्ली पर रूसी तेल के प्रवाह को लेकर बढ़ते दबाव के कारण लिया गया है। अमेरिका ने इस मामले में कड़े शुल्क लगाए हैं, जिसके चलते यह बदलाव देखने को मिल रहा है।

इंडियन ऑयल कॉर्प, भारत पेट्रोलियम कॉर्प और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्प जैसी कंपनियां आगामी खरीद चक्र में कच्चे तेल की स्पॉट खरीद को छोड़ने की योजना बना रही हैं। सूत्रों के अनुसार, जब तक सरकार की ओर से स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं मिल जाता, तब तक ये कंपनियां अक्टूबर में लोड होने वाले रूसी तेल 'उरल' की खरीद नहीं करेंगी।

अमेरिकी कार्रवाई का प्रभाव

वैश्विक तेल बाजार भारत की कच्चे तेल की खरीद पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूसी कच्चे तेल लेने के कारण भारत के रिफाइनरों को सीधे तौर पर दंडित करते हुए अमेरिका को होने वाले सभी भारतीय निर्यात पर शुल्क दोगुना कर दिया है। यह कार्रवाई, जो अभी तक चीन (एक अन्य प्रमुख खरीदार) के खिलाफ नहीं की गई है, का उद्देश्य मॉस्को पर यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए दबाव डालना है।

बाजार पर असर

इस तनाव ने इस सप्ताह वायदा कारोबार को प्रभावित किया है, क्योंकि व्यापारी प्रवाह में व्यवधान की संभावनाओं का आकलन कर रहे हैं। साथ ही, वे यह भी देख रहे हैं कि क्या भारतीय रिफाइनर कम बैरल खरीदने का विकल्प चुनते हैं तो मॉस्को वैकल्पिक खरीदारों को ढूंढ पाएगा या नहीं। गुरुवार को ब्रेंट क्रूड 67 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थोड़ा बदला, जो पांच दिनों की गिरावट के बाद हुआ।

सरकारी रुख

आधिकारिक तौर पर, नई दिल्ली ने रिफाइनरों को मॉस्को का कच्चा तेल खरीदना बंद करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लगातार पश्चिमी देशों के दबाव का विरोध कर रही है।

  • भारत की तेल कंपनियां रूसी तेल से पीछे हट रही हैं।
  • अमेरिका के दबाव के कारण लिया गया फैसला।
  • बाजार में उथल-पुथल की आशंका।

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