वी.एस. अच्युतानंदन का नास्तिक बनने का सफर
केरल के दिग्गज कम्युनिस्ट नेता वी.एस. अच्युतानंदन अपनी बेबाक राय और जुझारू स्वभाव के लिए जाने जाते थे। उनके जीवन में एक ऐसा दौर आया जब उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। यह उनके बचपन के अनुभवों और समाज में व्याप्त असमानता को देखने का नतीजा था।
एक बार वी.एस. ने कहा था, "मुझे सभी देवता पसंद हैं। लेकिन मुझे संदेह है कि वे मौजूद हैं या जीवित हैं या नहीं। मुझे वही संदेह है जो देश के बाकी सभी लोगों को है।" यह बयान उनके नास्तिक विचारों की गहराई को दर्शाता है।
बचपन की कठिनाइयाँ और विचारधारा का उदय
वी.एस. अच्युतानंदन का बचपन दुख और असफलताओं से भरा था। इसी कठिन दौर ने उन्हें एक योद्धा और नेता के रूप में आकार दिया। बचपन में मिले झटकों ने ही उन्हें किसी भी चीज से समझौता न करने और हमेशा लड़ने की ताकत दी।
माना जाता है कि वी.एस. का ईश्वर में विश्वास त्यागने के पीछे भी उनके बचपन की कड़वी यादें थीं। उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय और पीड़ा को करीब से देखा, जिससे उनका मन ईश्वर के प्रति विरक्त हो गया।
वी.एस. अच्युतानंदन का जीवन हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए और हमेशा सच के लिए लड़ना चाहिए। उनकी विचारधारा आज भी कई लोगों को प्रेरित करती है।