स्टार हेल्थ इंश्योरेंस: अस्पतालों और बीमा कंपनियों में क्यों हो रहा है टकराव?

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा है, क्योंकि अस्पताल और बीमा कंपनियां कैशलेस मेडिकल ट्रीटमेंट को लेकर आपस में भिड़ रही हैं। यह टकराव कोविड-19 महामारी के बाद से ही बढ़ रहा है, जिसके कारण दोनों पक्षों के बीच असंतोष और दुश्मनी बढ़ गई है।

हाल के वर्षों में, कई बड़े अस्पतालों में प्राइवेट इक्विटी फंडिंग में भारी वृद्धि हुई है। 20-30% रिटर्न की उम्मीद के साथ, अस्पतालों की लागत में लगातार इजाफा हो रहा है। यह स्थिति बीमा कंपनियों पर दबाव डाल रही है, जो लागत को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं।

12 सितंबर को, स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस के पॉलिसीधारकों में डर की लहर दौड़ गई। एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) (एएचपीआई), जो भारत भर के 15,000 से अधिक अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा संस्थानों का प्रतिनिधित्व करता है, ने 22 सितंबर से स्टार हेल्थ के लिए कैशलेस सेवाएं वापस लेने की धमकी दी थी।

इसी तरह की दहशत 22 अगस्त को बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस और केयर हेल्थ इंश्योरेंस के पॉलिसीधारकों के बीच फैल गई थी, जब एएचपीआई ने इन बीमाकर्ताओं के लिए उत्तरी भारत में कैशलेस सेवाएं निलंबित करने की चेतावनी दी थी। हालांकि, अंतिम समय में हुई बातचीत के बाद संकट टल गया था।

टकराव के कारण क्या हैं?

  • अस्पतालों द्वारा लागत में वृद्धि
  • बीमा कंपनियों द्वारा कैशलेस सेवाओं का निलंबन
  • पुरानी दरों का संशोधन न होना
  • पारदर्शी शिकायत निवारण तंत्र का अभाव
  • नैदानिक स्वायत्तता का सम्मान न करना

अस्पतालों का कहना है कि बीमा कंपनियां उन्हें उचित दरें नहीं दे रही हैं, जबकि बीमा कंपनियों का कहना है कि अस्पताल अनुचित रूप से लागत बढ़ा रहे हैं। इस विवाद के कारण, मरीजों को भारी वित्तीय और भावनात्मक बोझ का सामना करना पड़ रहा है।

आगे क्या होगा?

यह देखना बाकी है कि अस्पताल और बीमा कंपनियां इस मुद्दे को कैसे हल करती हैं। हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस टकराव का भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।

कैशलेस सेवाओं का महत्व

कैशलेस सेवाएं मरीजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे उन्हें अस्पताल में भर्ती होने के दौरान वित्तीय तनाव से बचाती हैं। यदि कैशलेस सेवाएं निलंबित कर दी जाती हैं, तो मरीजों को पहले अपनी जेब से भुगतान करना होगा और बाद में बीमा कंपनी से प्रतिपूर्ति करानी होगी, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया हो सकती है।

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