हाल के वर्षों में, भारत और अमेरिका के संबंधों में उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। जहाँ एक समय में दोनों देशों के बीच घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी थी, वहीं अब कुछ विश्लेषक रिश्तों में दरार आने की बात कर रहे हैं। इस संदर्भ में, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के विचार महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
ट्रंप प्रशासन और भारत: एक बदलता परिदृश्य
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए, भारत पर दबाव बनाने की अमेरिकी रणनीति में बदलाव आया, जिससे कई विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की। कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका, भारत के उदय को एक चुनौती के रूप में देख रहा है और इसलिए उस पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव बना रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड वोल्फ ने भारत के खिलाफ ट्रंप के टैरिफ को 'चूहे का हाथी पर वार करने जैसा' बताया था, और कहा कि अमेरिका अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है।
'ब्रोमांस' में दरार?
एक समय था जब अमेरिकी मीडिया ने ट्रंप और मोदी की दोस्ती को 'ब्रोमांस' का नाम दिया था। हालांकि, यह दोस्ती भी अविश्वास के बादल से घिर गई। 2019 में, ट्रंप ने पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम इमरान खान से मुलाकात के दौरान कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने की पेशकश की थी, यह दावा करते हुए कि पीएम मोदी ने उनसे ऐसा करने के लिए कहा था। इस घटना ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को जन्म दिया।
रघुराम राजन की राय
रघुराम राजन जैसे अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। पश्चिमी देशों में भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ रहा है, और यह भारत के लिए एक महाशक्ति बनने का अवसर हो सकता है। राजन ने अक्सर भारत को आर्थिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की सलाह दी है। उनका मानना है कि भारत को किसी भी देश पर अत्यधिक निर्भर नहीं होना चाहिए और अपने हितों को सर्वोपरि रखना चाहिए।
आगे की राह
भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। साथ ही, उसे अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहिए और एक बहुध्रुवीय दुनिया में अपनी भूमिका को बढ़ाना चाहिए। राजन के विचारों को ध्यान में रखते हुए, भारत को आर्थिक विकास, रणनीतिक स्वायत्तता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।