पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक 19 वर्षीय मजदूर, अमीर शेख, की कहानी इन दिनों सुर्खियों में है। अमीर, जो काम की तलाश में राजस्थान गया था, कथित तौर पर बांग्लादेश में निर्वासित कर दिया गया था। अब, घर लौटने के बाद, अमीर और उसका परिवार इंसाफ की मांग कर रहे हैं।
अमीर के परिवार का आरोप है कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने इस मामले को दबाने की कोशिश की। परिवार का कहना है कि उन्हें बीएसएफ अधिकारियों के फोन आए जिन्होंने अमीर के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी और उसे चुपचाप वापस ले जाने के लिए कहा। परिवार को लगा कि बीएसएफ अदालत में अपनी छवि बचाने के लिए ऐसा कर रही है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस मामले में गृह मंत्रालय और राजस्थान पुलिस से रिपोर्ट मांगी है। अदालत अमीर के पिता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने अपने बेटे के गलत तरीके से निर्वासन के लिए केंद्र सरकार से मुआवजे की मांग की है।
अमीर की कहानी
अमीर काम की तलाश में राजस्थान गया था। 25 जून को, उसे राजस्थान पुलिस ने हिरासत में ले लिया, कथित तौर पर बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में। चौंकाने वाली बात यह है कि उसे बिना किसी उचित प्रक्रिया के बांग्लादेश में निर्वासित कर दिया गया।
परिवार की प्रतिक्रिया
उसके परिवार को इस घटना के बारे में उसकी निर्वासन के बाद ही पता चला और उन्होंने बांग्लादेशी अधिकारियों से मदद मांगी। अमीर को अंततः जमानत दी गई और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश द्वारा भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया गया। बीएसएफ ने बाद में उसे पश्चिम बंगाल पुलिस को सौंप दिया और वह मालदा में अपने घर लौट आया।
इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर उन प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा को लेकर जो काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं। यह मामला यह भी उजागर करता है कि कैसे पहचान के गलत मामलों में लोगों को गंभीर अन्याय का सामना करना पड़ सकता है।
अमीर और उसका परिवार अब इंसाफ के लिए लड़ रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी और को इस तरह के अन्याय का सामना न करना पड़े।